Kaal Sarp Yog Dosh By Pandit Pradeep Mishra Sehore Wale |
कालसर्प योग प्राणीमात्र के जन्म जन्मान्तरों में संचित दुष्कर्मो के फल से प्राप्त होता है ।यह कभी-कभी किसी जीव को अपने वंशज या माता-पिता के किये कर्मों का फल भी भोग कराता है। यह योग अधिकांशतः उच्चवर्गो की कुण्डली मे मिलता है। इस योग (काल सर्प योग ) वाला व्यक्ति बहुत ऊँचाईयाँ छूता है या ऊँचाइयाँ छूने के बाद नीचे गिर जाता है।
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कालसर्प योग से क्या नुकसान होते है?
विदेश यात्रा में रूकावट(Foreign Travel),सन्तान से कष्ट,पदोन्नति में बाधा,विवाह में विलम्ब का कारण,व्यापार में बहुत बड़ा घाटा (Business Loss),अचानक जीवन का अन्त,दाम्पत्य जीवन में सुख में कमी आदि।
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कालसर्प योग के निदान पर लाभ क्या होते है?
अचानक भाग्योदय होने लगता है, उत्तरोत्तर जीवन में नये-नये मोड़,व्यापार-व्यावसाय में बहुत बड़ा लाभ, स्वास्थ पर अनुकुल प्रभाव देखने को मिलते है,सन्तति मे सुख में लाभ कम समय में पूर्ण विकास हो जाना व व्यक्ति राजनीति में बहुत बड़ा नाम करता है।
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कालसर्प योग 12 प्रकार कुण्डली में परिलक्षित होता है। वैसे तो 288 प्रकार का यह योग बनता है फिर भी मानव जीवन को बारह प्रकार के कालसर्प योग प्रभावित करते है जो इस प्रकार हैं-
➢जन्मकुण्डली में प्रथम (तनु) भाव में राहु, सप्तम में केतु होने से अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है।
➢कुण्डली में दूसरे घर में राहु और अष्टममें केतु बैठने से कर्कोटक नामक कालसर्प योग बनता है।
➢तृतीय स्थान में राहु, नवम में केतु होने से वासुकी नाम कालसर्प योग बनता है।
➢चौथे में राहु, दशम में केतु, शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है।kaal sarp yog duration,kaal sarp yog puja,kaal sarp yog kab banta hai,kaal sarp yog benefits,kaal sarp yog kya hota hai in hindi,kaal sarp dosh what is,kaal sarp yog by date of birth
➢पंचम में राहु, बारहवे में केतु महापदम नामक कालसर्प योग बनता हैछठे घर में राहु, दूसरे में केतु, तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है।
➢सातवे में राहु, लग्न में केतु, कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है।
➢आठवे घर में राहु, दूसरे में केतु, कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है।
➢नवम भाव में राहु, तथा तृतीय में केतु शंखनाद नामक कालसर्प योग बनता है ।
➢दशम में राहु, चतुर्थ में केतु, पातक नामक कालसर्प योग बनता है।
➢ग्यारहवे में राहु, षष्ठ में केतु, विषाक्त नामक कालसर्प योग बनता है ।
➢बारहवें में राहु, षष्ठ में केतु, शेषनाग नामक कालसर्प योग बनता है ।
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